*📓Buddha Jayanti 2020:भगवान बुद्ध की शिक्षाएं जो जीवन को बदल सकती हैं और सकारात्मकता की ओर ले जाती हैं📓*

Buddha Jayanti 2020: बुद्ध पूर्णिमा, जिसे बुद्ध जयंती के रूप में भी जाना जाता है. इस दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक 'भगवान गौतम बुद्ध' का जन्म हुआ था. इस साल 7 मई को बुद्ध जयंती मनाई जा रही है. बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार भारत और अन्य एशियाई देशों के हिंदुओं और बौद्धों दोनों द्वारा मनाया जाता है.



*✍️गौतम बुद्ध का पारिवारिक जीवन*

गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी में हुआ था. उनके पिता शुद्धोधन शाक्यगण के प्रधान थे तथा माता माया देवी अथवा महामाया कोलिय गणराज्य (कोलिय वंश) की कन्या थीं. गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था. इनके जन्म के कुछ दिनों के बाद इनकी माता का देहांत हो गया था और इनका पालन उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था. इनका विवाह 16 वर्ष की अल्पायु में शाक्य कुल की कन्या यशोधरा के साथ हुआ था. इनके पुत्र का नाम राहुल था.

*✍️बुद्ध के जीवन में चार द्रश्यों का अत्यधिक प्रभाव पड़ा:*

- वृद्ध व्यक्ति

- बीमार व्यक्ति

- मृतक

- और प्रसन्नचित्त संन्यासी

इन सबके बारे में उन्होंने अपने सारथी से पूछा तो उसने कहा कि हर एक के जीवन में बुढ़ापा आने पर वह रोगी हो जाता है और रोगी होने के बाद वह मृत्यु को प्राप्त करता है. जब उन्होंने संन्यासी के बारे में पूछा तो सारथी ने कहा कि संन्यासी ही है जो मृत्यु के पार जीवन की खोज में निकलता है. जब उनकी पत्नी और बच्चा सो रहे थे तब उन्होंने ग्रह त्याग किया. यहीं आपको बता दें कि बौद्ध ग्रंथों में गृह त्याग को ‘महाभिनिष्क्रमण’ की संज्ञा दी गई है.

*✍️कैसे सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बने?*
गृहत्याग  के बाद सिद्धार्थ अनोमा नदी के तट पर अपने सिर को मुंडवा कर भिक्षुओं का काषाय वस्त्र धारण किया.

इधर से उधर वे लगभग 7 वर्ष तक भटकते रहे, सर्वप्रथम वैशाली के समीप अलार कलाम नामक संन्यासी के आश्रम में आये. उसके बाद वे उरुवेला (बोधगया) के लिए प्रस्थान किये जहां पर उन्हें कौडिन्य इत्यादि पांच साधक मिले.

6 वर्ष तक घोर तपस्या और परिश्रम के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा की एक रात पीपल (वट) वृक्ष के निचे निरंजना (पुनपुन) नदी के तट पर सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ. इसी दिन से वे तथागत हो गये. ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए.

उरुवेला से गौतम बुद्ध सारनाथ आये जहां पर उन्होंने पांच ब्राह्मण संन्यासीयों को अपना प्रथम उपदेश दिया. जिसे बौध ग्रंथों में ‘धर्म चक्र परिवर्तन’ के नाम से जाना जाता है. यहीं से सर्वप्रथम बौध संघ में प्रवेश प्रारम्भ हुआ. तपस्स और काल्लिक नाम के शूद्रों को महात्मा बुद्ध ने सर्वप्रथम अनुयायी बनाया.

महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन का सर्वप्रथम उपदेश कोशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिया. उन्होंने मगध को अपना प्रचार केंद्र बनाया.

*बौध धर्म की शिक्षाएं एवं सिद्धांत*

बौध धर्म के त्रिरत्न हैं – बुद्ध, धम्म और संघ.

*✍️बौध धर्म के चार आचार्य सत्य हैं:*

1. दुःख

2. दुःख समुदाय

3. दुःख निरोध

4. दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा (दुःख निवारक मार्ग) अर्थार्त अष्टांगिक मार्ग.

साथ ही दुःख को हरने वाले तथा तृष्णा का नाश करने वाले अष्टांगिक मार्ग के आठ अंग हैं.

अष्टांगिक मार्ग के तीन मुख्य भाग हैं: प्रज्ञा ज्ञान, शील तथा समाधि. इन तीन प्रमुख भागों के अंतर्गत जिन आठ उपायों की प्रस्तावना की गयी है वे इस प्रकार हैं:

- सम्यक दृष्टि: वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप का ध्यान करना

- सम्यक संकल्प: आस्तिक, द्वेष तथा हिंसा से मुखत विचार रखना

- सम्यक वाणी: अप्रिय वचनों का सर्वदा परित्याग

- सम्यक कर्मान्त: दान, दया, सत्य, अहिंसा इत्यादि सत्कर्मों का अनुसरण करना

- सम्यक आजीव: सदाचार के नियमों के अनुकूल आजीविका का अनुसरण करना

- सम्यक व्यायाम: नैतिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक उन्नति के लिये सतत प्रयत्न करना

- सम्यक स्मृति: अपने विषय में सभी प्रकार की मिद्या धारणाओं का त्याग करना

- सम्यक समाधि: मन अथवा चित को एकाग्रता को सम्यक समाधि कहते हैं.

अष्टांगिक मार्ग को भिक्षुओं का ‘कल्याण मित्र’ कहा गया है. बौध धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य है निर्वाण की प्राप्ति. यहीं आपको बता दें कि निर्वाण का अर्थ है दीपक का बुझ जाना और जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाना. यह निर्वाण इसी जन्म से प्राप्त हो सकता है, किन्तु महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद ही संभव है.

बुद्ध ने दस शिलों के अनुशीलन को नैतिक जीवन का आधार बनाया है. जिस प्रकार दुःख समुदाय का कारण जन्म है उसी तरह जन्म का कारण अज्ञानता का चक्र है. इस अज्ञान रूपी चक्र को ‘प्रतीत्य समुत्पाद’ कहा जाता है.

‘प्रतीत्य समुत्पाद’ ही बुद्ध के उपदेशों का सार एवं उनकी संपूर्ण शिक्षाओं का आधार स्तम्भ है. इसका शाब्दिक अर्थ है: प्रतीत्य मतलब किसी वस्तु के होने पर और समुत्पाद का अर्थ है किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति.

‘प्रतीत्य समुत्पाद’ के 12 क्रम हैं जिसे द्वादश निदान कहा जाता है. जिसमें सम्बन्धित हैं:

जाति, जरामरण – भविष्य काल से

अविधा, संस्कार – भूतकाल से

विज्ञान, नाम-रूप, स्पर्श, तृष्णा, वेदना, षडायतन, भव, उपादान – वर्तमान काल से

*बौध धर्म मूलत:* अनीश्वरवादी है. बौध धर्म अनात्मवादी है. इसमें आत्मा की परिकल्पना नहीं की गई है. यह पुनर्जन्म में विशवास करता है. बौध धर्म ने जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था का विरोध किया. बौध धर्म का दरवाजा हर जातियों के लिए खुला था. सत्रियों को भी संघ में प्रवेश का अधिकार प्राप्त था. बौध संघ का संगठन गणतंत्र प्रणाली पर आधारित था. बौधों का सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण त्यौहार वैशाख पूर्णिमा है जिसे ‘बुद्ध पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है. इसका महत्व इसलिए हैं क्योंकि इसी दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई.

महात्मा बुद्ध अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में हिरण्यवती नदी के तट पर कुशिनारा पहुंचे. जहां पर 80 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हो गई. इसे बुद्ध परम्परा में महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है. मृत्यु से पहले उन्होंने अपना अंतिम उपदेश कुशिनारा के परिव्राजक सुभच्छ को दिया. महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध के अवशेषों को आठ भागों में विभाजित किया गया.


*✍️अंत में महात्मा बुद्ध के अनमोल विचार या कोट्स(Questos)*

इसमें कोई संदेह नहीं है की महात्मा बुद्ध की शिशाओं और कथनों को अपने जीवन में उतार कर सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त कर सकते हैं. जीवन की कई समस्याओं से बच सकते हैं.

1. तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकतीं, सूर्य, चंद्रमा और सत्य.

2. तुम अपने क्रोध के लिए नहीं दंड पाओगे, तुम अपने क्रोध के द्वारा दंड पाओगे.

3. मैं कभी नहीं देखता कि क्या किया जा चुका है. मैं हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है.

4. जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते.

5. हजारो साल बिना समझदारी के बिना जीने से बेहतर है, एक दिन समझदारी के साथ जीना.

6. घ्रणा को घ्रणा से खत्म नहीं किया जा सकता है बल्कि इसे प्रेम से ही खत्म किया जा सकता है जो की एक प्रक्रतिक सत्य है.

7. हम अपने विचारों से ही अच्छी तरह ढलते है, हम वही बनते है जो हम सोचते है. जब मन पवित्र होता है तो खुशी परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ चलती है.

8. अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें, दूसरों पर निर्भर ना रहे.

9. शारीरिक आकर्षण आँखों को आकर्षित करती है, अच्छाई मन को आकर्षित करती है.

10. आज हम जो कुछ भी हैं, वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है.

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